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इंडोनेशिया में ‘Dark Indonesia’ आंदोलन: बजट कटौती के खिलाफ छात्रों का उग्र प्रदर्शन

जकार्ता: इंडोनेशिया की सड़कें इन दिनों छात्रों के गुस्से से गर्म हैं। ‘डार्क इंडोनेशिया’ नाम के इस आंदोलन में काले कपड़े पहने युवा सरकार की बजट कटौती और नीतियों के खिलाफ नारेबाजी करते नजर आ रहे हैं। राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो के सत्ता संभालने के महज चार महीने बाद ही यह विरोध प्रदर्शन उनके लिए बड़ी चुनौती बनकर उभरा है। आइए समझते हैं पूरा माजरा…

क्यों भड़का छात्रों का गुस्सा?

सरकार ने हाल में कई मंत्रालयों और एजेंसियों का बजट घटाया है। इसका मकसद प्रबोवो की ‘मुफ्त भोजन योजना’ को फंड देना है, जिस पर 2029 तक 63 अरब डॉलर खर्च हो सकते हैं। लेकिन छात्रों का आरोप है कि इसकी कीमत शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे अहम क्षेत्रों को चुकानी पड़ रही है।

‘डार्क इंडोनेशिया’ की 5 बड़ी मांगें:

  1. शिक्षा बजट कटौती तुरंत वापस ली जाए।
  2. मुफ्त भोजन योजना पर फिर से विचार हो।
  3. सेना का नागरिक प्रशासन से अलगाव हो।
  4. एलपीजी सब्सिडी बहाल की जाए।
  5. शिक्षकों और कर्मचारियों को समय पर वेतन मिले।

जकार्ता से सुमात्रा तक आग की लपटें

प्रदर्शनकारी जकार्ता के राष्ट्रपति भवन से लेकर जोगजकार्ता और सुमात्रा तक सड़कों पर उतरे हैं। कई जगहों पर पुलिस और छात्रों के बीच झड़पें भी हुईं। सोशल मीडिया पर #DarkIndonesia ट्रेंड कर रहा है, जिससे युवाओं का गुस्सा और भड़क रहा है।

सरकार का दावा vs जमीनी हकीकत

सरकार का कहना है कि बजट कटौती से शिक्षा प्रभावित नहीं होगी। लेकिन छात्र नेता बताते हैं कि कई विश्वविद्यालयों में फंड की कमी से पढ़ाई ठप पड़ी है। हालांकि, सरकार ने फीस न बढ़ाने का ऐलान किया, मगर प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहे।

जनता को क्यों है नाराजगी?

  • सरकारी दफ्तरों में एसी और बिजली पर पाबंदी
  • कर्मचारियों की छंटनी का डर
  • जलवायु एजेंसी का बजट आधा किया गया
  • सेमिनार और शोध पर रोक

प्रबोवो के लिए बड़ी परीक्षा

80% लोकप्रियता वाले प्रबोवो के सामने यह पहली बड़ी चुनौती है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह आंदोलन और बड़े रूप ले सकता है।

फ्रेशव्लॉग की नज़र:

‘डार्क इंडोनेशिया’ सिर्फ बजट विवाद नहीं, बल्कि युवाओं की आवाज़ का प्रतीक है। इंडोनेशिया जैसे विकासशील देश में शिक्षा और स्वास्थ्य में कटौती लंबे समय में भारी पड़ सकती है। सरकार को चाहिए कि युवाओं की चिंताओं को गंभीरता से ले और संवाद का रास्ता अपनाए। क्या प्रबोवो इस आग को शांत कर पाएंगे? वक्त बताएगा…

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